गुण व उपयोग: त्रिफला घृत के सेवन से आंख की ज्योति बढ़ती है तथा रतौंध, आंखों से पानी बहना, खुजली पड़ना, रक्त दृष्टि, नेत्र पीड़ा
गुण व अनुपान: - यह पौष्टिक, शीतवीर्य एवं बाजीकरण है। इसके सेवन से रक्तपित्त, वातरक्त, शुक्र रोग, शरीर की जलन, पित्तज्वर, योनिशूल, मूत्रकृच्छ आदि रोगों...
गुण व अनुपान: - इसके सेवन से कुष्ठ, रक्तपित्त, खूनी बवासीर, विसर्प, अम्लपित्त, वातरक्त, पांडु रोग, विस्फोट, यक्ष्मा, उन्माद, कामला, पामा, कण्डु, जीर्ण ज्वर, रक्तप्रदर...
गुण व अनुपान: - यह उन्माद एवं अपस्मार (मिर्गी) रोग, मस्तिष्क की दुर्बलता, गलदोष, प्रतिश्याय, तृतियक और चातुर्थिक ज्वर, श्वास-कास आदि रोगों में लाभ करता...
गुण व अनुपान: - यह अनेक विकारों में ताजे घृत की अपेक्षा अधि श्रेष्ठ, लाभप्रद एवे उत्कृष्ठ माना जाता है। यह उन्माद, अपस्मार एवं अनिद्रा...
गुण व अनुपान: - यह हृदय रोग, शूल, उर:क्षत, रक्तपित्त, खांसी आदि में लाभ करता है। यह शरीर को बल प्रदान करता है।
मात्रा व अनुपान:...
गुण व अनुपान: - यह दिमाग की कमजोरी हटाकर स्मरण शक्ति बढ़ाने वाला है। इसके सेवन से अपस्मार, उन्माद, हकलापन बोलना, बुद्धि की निर्भबलता, मनोदोष,...
पर्यायवाची: फलकल्याण घृत
गुण व अनुपान: - यह सभी प्रकार के स्त्री रोगों में लाभदायक है। इसके सेवन से गर्भाश्य की कमजोरी, बार-बार गभग्पात होना, बांझपन,...
गुण व अनुपान: - इसके सेवन से कुष्ठ, वात-पित्त एवं कफज रोग, दुष्टव्रण, कृमि रोग, अर्श, ज्वर, कास, रक्त व चर्म रोग आदि में लाभ...
गुण व अनुपान: - यह उन्माद एवं अपस्मार, क्षय, श्वास, पेट-दर्द, हाथ-पांव की सूजन, पेट की वायु, कब्ज, धातु क्षीणता, भगन्दर, पांडु-कामला, दमा-खांसी, हल्का बुखार...
गुण व अनुपान: - शरीर के किसी भी अंग जैसे कान, आँख, नाक, लिंग, वृक्क आदि से रक्त निकलता हो ऐसी अवस्था में यह शीघ्र...
गुण व अनुपान: - यह रक्तदुष्टि, रक्तस्राव, रतौंधी, तिमिर, आँखों में ज्यादा दर्द होना, आँखों से कम दिखार्इ पड़ना व अन्य प्रकार के नेत्ररोगों में...
गुण व अनुपान: - इसके सेवन से नाड़ीव्रण (नासूर), घाव, जले का घाव व अन्य प्रकार के गहरे घाव आदि में लगाने से लाभ मिलता...
गुण व अनुपान: - इसका मुख्यत: उपयोग मानसिक रोगों में किया जाता है। यह उन्माद, रोग की प्रारम्भिक अवस्था, हिस्टीरिया, मिर्गी (अपस्मार), मूर्छा आदि रोगों...
गुण व अनुपान: - इसके सेवन से तिल्ली, गुल्म, सूजन, उदर रोग, बवासीर, संगहणी, पुराना अतिसार, पेट फूलना व अरूचि आदि रोगों में शीघ्र लाभ...
गुण व अनुपान: - यह उत्तम पौष्टिक और वाजीकरण है। यह वीर्यक्षय, शरीर की कृशता (दुबलापन) और नपुंसकता, रक्तपित्त, क्षत-क्षीणता, कामला, वातरक्त, हलीमक, पांडु, स्वरक्षय...
गुण व अनुपान: - यह स्त्रियों के सभी प्रकार के प्रदर रोग, कुक्षि का दर्द, योनि की पीड़ा, मन्दाग्नि, अरूचि, पांडु, कामला, कमर दर्द, दुबलापन,...
गुण व अनुपान: - यह उन्माद, अपस्मार, हिस्टीरीया, दिमाग की कमजोरी, तुतलाना, अग्निमांद्य, पांडु, कण्डु, जहर, सूजन, प्रमेह, कास, श्वास, ज्वर, पारी का ज्वर, वातरोग,...
गुण व अनुपान: - इसके सेवन से बल, वर्ण, रूचि, जठराग्नि, मेधा और कांति बढ़ती है। दाँत आने के समय बालकों को इसके सेवन कराने...
गुण व अनुपान: - इसकी शरीर पर मालिश करने से समस्त प्रकार के कुष्ठ, दाद, पामा, विचर्चिका, विसर्प, वातरक्त-जनित विस्फोट, सिर के फोड़े, उपदंश, नाड़ी...